ततैया/पीला बर्रे/ बिरनी की कहानी
हमारे गाँव में पहले ततैया बहुत रहते थे कारण कि अधिकांश लोगों का घर घास-फूस का होता था और वहा यह किसी कोने मे या लकड़ी के आलमारी या पलंग के कोना में अपना घर बनाते थे
हमारे यहाँ इसको बिरनी (भोजपुरी में) कहते हैं और इसके काटने से बहुत तेज दर्द शरीर सुज या बुखार भी हो जाता है।
हम गांव में अगर किसी के घर में या कही कोई आने जाने जगह पर ततैया/बिरनी का छाता बन जाता था तो पूरे गांव को पता होता था कि फलाने के यहाँ या फलाने जगह बिरनी का छाता बना है सावधान रहना और बच्चों को जाने मत देना। जहाँ छाता होता था वहाँ बच्चों का जाना दो कारण से मना था, एक बच्चों को बिरनी काट लेगी और दुसरा बच्चे शरारती होते हैं तो वो छाता पर पत्थर फेक के छाता तोड़ सकते हैं।
लेकिन एक दिन बिरनी/ततैया का झुंड एक आदमी को बुरी तरह काट लिया और वो बहुत बीमार हो गये उनका गलती यह था कि उनके लाठी से भूल वस ततैया के छाता मे लगने से टूट गया था और उससे ततैया सब उनपर आक्रमण कर दिया था।
इसके बाद वो आदमी बहुत चिढ़ता था ततैया देख और मारने के प्रयास में लगा रहता था
फिर उसे एक कोई दुसरे जगह का आदमी से एक उपाय मिला ततैया मारने की और उसने उस उपाय से ततैया को मारना शुरु किया
वो उपाय था कि एक लाठी के उतरे हिस्से में बहुत सारा कपडा़ बांध कर फिर उसमें केरोसिन तेल लगा के जला कर तथा लाठी को और बड़ा बनाकर (लाठी में दुसरा लाठी बांधकर) फिर जलता हुआ कपडा़ का हिस्सा ततैया का छाता में लगा के पूरे छाता को जला कर राख कर देना।
गाँव के लोगों ने इसे देखा और कहाँ की क्या एक बार तुम्हारे साथ बुरा हुआ इसका यह मतलब नहीं कि तुम कोई भी ततैया के छाता को जला दोगे, तुम्हें पता है उससे बहुत बेज़बान और छोटे छोटे ततैया अंडा भी साथ में जलकर राख हो जाते हैं
इतना बुद्धि नहीं है तुम्हें, इतना पाप करते हो शर्म नहीं आती
फिर एक गांव के ही बुजुर्ग बोले कि देखो ततैया से बचने का एक उपाय हैं मेरे पास अगर सब चाहे तो अपना सकते हैं
तो सब बोले कि बताईए क्या ऊपाय है तो वो बुजुर्ग बोले कि जहाँ जहाँ सब रहते हैं या काम करते हैं वहाँ साफ सफाई रखे और रोज धुआ किया करे ततैया नहीं आएगी कभी भी।
फिर कुछ लोग मान गये बुजुर्ग का बात सुने और वैसा करने लगे
फिर भी कुछ लोग उस आदमी जैसा ततैया के छाता को जलाते रहे
पर आज के समय में मेरे गांव में ततैया/बिरनी लगभग समाप्त हो गए या कही बड़ा पेड़ पर ही अपना छाता बना के रहते हैं जहाँ इंसान न पहुच सके
ऐसे ही न जाने किसने जीव के समस्त परिवार को हम मार दिये और उनकी प्रजाति को खत्म कर दिये
पर यह सब कभी न मुद्दा था न कभी यह संवेदना भरी चिंता
क्योंकि यह सब छोटे जीव है उनका मरना खत्म हो जाना कोई मायने नहीं रह जाता है।
आज यह इसलिए लिखा क्योंकि बहुत लोग दुःखी हैं एक गर्भवती हथनी के मरने से और मेरा मानना है होना भी चाहिए लेकिन बिना वजह के हमारे आसपास भी बहुत से जीव की हत्या रोज होती है और हमें वो संवेदना शून्य बराबर होता है।
अगर हम सभी चीज़ पर संवेदनशील रहे तो शायद केरल में हथनी को जैसे मारा गया वो घटना कभी नहीं होगा।
जीव छोटा हो या बड़ा सबके जान की किमत एक समान होनी चाहिए।
-आशीष कुमार मिश्र
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