"ईश्वर के दिन रात और वर्ष महिने की गणना"
"ईश्वर के दिन रात और वर्ष महिने की गणना"
क्या यह पता है कि ईश्वर के दिन रात और वर्ष महिने अगल होते हैं ?
क्या यह अंतर जानते हैं कि ब्रह्मा जी के आयु गणना इन सब तरिका से भिन्न होता है और उनकी आयु कितनी हैं ?
आईए जानते हैं -
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः।।
जो मनुष्य ब्रह्माके एक हज़ार चतुर्युगीवाले एक दिनको और सहस्त्र चतुर्युगीपर्यन्त एक रातको जानते हैं, वे मनुष्य ब्रह्माके दिन और रातको जाननेवाले हैं।
अब गणना बताते है-
सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि-मृत्युलोक के इन चार युगको एक चतुर्युगी कहते हैं। ऐसी एक हजार चतुर्युगी बीतने पर ब्रह्माजी का एक दिन होता है और एक हजार चतुर्युगी बीतने पर ब्रह्माजी की एक रात होती है। दिन-रात की इसी गणनाके अनुसार सौ वर्षों की ब्रह्माजी की आयु होती है।
ब्रह्माजी की आयु के सौ वर्ष बीतने पर ब्रह्माजी परमात्मा में लीन हो जाते हैं और उनका ब्रह्मलोक भी प्रकृति में लीन हो जाता है तथा प्रकृति परमात्मा में लीन हो जाती है।
अब आईए आपको समान्य दिन रात गणना से क्रमबद्ध चतुयुर्गी बताते हूए ब्रह्मा जी के दिन रात तक ले जाते हैं।
अत्यन्त सूक्ष्म काल है- परमाणु। दो परमाणुओं का एक अणु और तीन अणुओं का एक त्रसरेणु होता है। झरोखे से आयी सूर्य-किरणों में त्रसरेणु उड़ते हुए दीखते हैं। ऐसे तीन त्रसरेणुओंको पार करनेमें सूर्य जितना समय लेता है, उसे त्रुटि कहते हैं।
सौ त्रुटियों का एक वेध, तीन वेधों का एक लव, तीन लवका एक निमेष और तीन निमेषोंका एक क्षण होता है। पाँच क्षणों की एक काष्ठा, पंद्रह काष्ठाओं का एक लघु, पंद्रह लघुओं की एक नाड़िका, छ: नाड़िकाओं का एक प्रहर और आठ प्रहरों का एक दिन-रात होता है।
पंद्रह दिन-रातोंका एक पक्ष, दो पक्षोंका एक मास, छ: मासोंका एक अयन और दो अयनोंका एक वर्ष होता है।
इस प्रकार मनुष्यों के एक एक वर्ष के समान देवताओं की एक दिन-रात है अर्थात् मनुष्यों का छः महीनों का उत्तरायण देवताओं का दिन है और छ: महीनों का दक्षिणायन देवताओं की रात है।
इस तरह देवताओं के समयका परिमाण मनुष्यों के समय के परिमाण से तीन सौ साठ गुणा अधिक माना जाता है। इस हिसाब से मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं के एक दिन-रात, मनुष्यों के तीस वर्ष देवताओं का एक महीना और मनुष्यों के तीन सौ साठ वर्ष देवताओं का एक दिव्य वर्ष है।
ऐसे ही मनुष्य के सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि-ये चार युग बीतने पर देवताओं का एक दिव्ययुग होता है अर्थात् मनुष्यों के सत्ययुग के सत्रह लाख अट्ठाईस हजार, त्रेता के बारह लाख छियान बे हजार, द्वापर के आठ लाख चौंसठ हजार और कलि के चार लाख बत्तीस हजार— ऐसे कुल तैंतालीस लाख बीस हजार वर्षों के बीतने पर देवताओं का एक दिव्ययुग होता है। इसको 'महायुग' और ‘चतुर्युगी' भी कहते हैं।
मनुष्यों और देवताओं के समयका परिमाण तो सूर्यसे होता है, पर ब्रह्माजी के दिन-रात का परिमाण देवताओं के दिव्य युगों से होता है।
अर्थात् देवताओं के एक हजार दिव्ययुगों का (मनुष्यों के चार अरब बत्तीस करोड़ वर्षों का) ब्रह्माजी का एक दिन होता है और उतने ही दिव्ययुगों की एक रात होती है। ब्रह्माजी के इसी दिनको 'कल्प' या 'सर्ग' कहते हैं और रातको 'प्रलय' कहते हैं।
इति!🙏
(-स्रोत श्रीमदभगवद्गीता से)
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