अछूत ब्राह्मण

 दलित से भी ज्यादा अछूत "महापात्र/महापातर  ब्राह्मण"




भारत देश में परंपरा और श्रद्धा भाव के बीच में कुछ सामाजिक कुरीति भी ऐसे रच-बस गयी हैं कि यह सामाजिक सद्भाव को खराब कर रही है। 

 

वैसे आपने सैकड़ों - हजारों कहानी, समाचार और आपराधिक मामला सुने या देखे होंगें अपने देश में जाति के नाम पर लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि 'नीच जाति' के नाम पर इस देश में अत्याचार केवल दलित वंचित या आदिवासी पर नहीं हुआ है जबकि अछूत कहकर समाज का सबसे "श्रेष्ठ" कहे जाने वाला 'ब्राह्मण समाज' के एक वर्ग जिसे "महापात्र ब्राह्मण" कहते हैं उनके साथ भी न जाने कई बर्षो से होते आ रहा है और इनकी गुहार शायद न कोई सुनता है ना ही कोई इसे मिटाने की कोई बेहतर प्रयास करते हुये देखा गया है। 

 

आइये जानते है कि कौन है महापात्र या महापातर ब्राह्मण -

 

दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तथा छतीसगढ के हिस्सों में हिंदू समाज में मृत्यु के बाद होने वाले कर्मकांड में एक विशेष रिति रिवाज है कि व्यक्ति के मृत्यु के 10वें ,11वें दिन एक खास ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें दान-दक्षिणा भोजन दिया जाता है और उसके बाद ही कर्मकांड को शुद्ध माना जाता है पर ये 'खास ब्राह्मण' न समान्य ब्राह्मण की तरह पूजा पाठ, कथा वाचन कर सकते हैं न ही सम्मान पा सकते हैं क्योंकि समाज इन ब्राह्मण को अछूत / नीच मानता है। ऐसा प्रचलन हैं कि ये "महापातर ब्राह्मण" दिन रात किसी न किसी के मरने की कामना करता है ताकि उसे दान और जीने के लिए जरुरी सामग्री मिल सके। 

 

कर्मकांड के समापन के बाद लोग इनसे दूरी बना के रहते हैं, कुछ जगह पर ऐसी भी धारणा है कि महापात्र ब्राह्मण को सुबह सुबह देख लेने से पुरा दिन खराब हो जाता है तो कुछ जगह पर कर्मकांड के आख़िर दिन इन्हें पत्थर, ईंट, हांठी मारकर भगाते है ताकि फिर ये कभी न आये क्योंकि समाज को लगता है कि "महापातर ब्राह्मण" बस लोगों के मरने की कामना करता है ताकि उसे दान और जीने के लिए कुछ धन मिल सके और एक बुरी कहावत भी है कि "महापातर ब्राह्मण" अपना लोटा हमेशा घुमाता रहता है ताकि आप पास कोई मर जाये और उसे खाने का निमंत्रण आ जाये। कुल मिलाकर इनके साथ वो हर छुआछूत के पैमाने से प्रताणित किया जाता है जो एक समाज में अछूत की परिभाषा हैं जैसे - अस्पृश्यता, गांव में प्रवेश नहीं तथा बातचीत में अमर्यादित शब्दों के संबोधन। 

 

"महापातर ब्राह्मण" को कर्मकांड मे दान के अलावा न कोई इनकी मदद करता है ना ही इन्हें किसी और महोत्सव में शामिल करता है आज भी इनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बद से बत्तर है और इस समाज के लोग आज भी दलितो से ज्यादा सामाजिक प्रताणना छुआछूत /अछूत होने का शिकार बनते है। इनके संरक्षण के लिए न कोई कानून का सहारा हैं और ना ही ये सामाजिक रुप से सक्षम है कि अपने ऊपर हुये घृणा भाव का मुकाबला समाज से कर सके। 

 

इनसे नफरत का कोई वजह नहीं है क्योंकि हम सब जानते हैं कि मृत्यु न इनके चाहने से होती है नाही ये "महापातर ब्राह्मण" किसी के मरने की कामना करते हैं क्योंकि इनकी पूछ समाज में कर्मकांड के समय होती है इसलिए "महापातर ब्राह्मण" इस परंपरा को निभा रहे हैं और कर्मकांड जैसे महत्वपूर्ण परंपरा को सही से पुरा करा रहे हैं। 

 

आज समाज का सबसे प्रबुद्ध वर्ग का एक तबका ऐसे प्रताणित और अछूत जैसा जी रहा है तब यह प्रतीत होता है कि 'सामाजिक सुधार' में अब भी हमारा समाज बहुत पीछे है।

हमें 21वीं सदी के दौर में ऐसा व्यवहार किसी के साथ न करने का अधिकार है ना ही किया जाना चाहिए,

समाज के प्रबुद्ध व सामाजिक चेतना पर चर्चा करने वाले संगठन को ऐसी कुप्रथा या ऐसी सोच को मिटाने का सही प्रयास करना चाहिए। 

 

-आशीष कुमार मिश्र 

Comments

  1. वाह आशीष भाई बात तो आपकी सही है इस पर किसी की नज़र क्यों नही जाती...

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  2. बहुत सुंदर लेख और अछूता विषय जिसपर अपने प्रकाश डाला है

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