समाज सुधारक
समाज सुधारक
समाज ने अपना कर्तव्य राजनीतिक दल को देकर कलयुग का सबसे बड़ा अधर्म किया है।
आज हर न्याय-अन्याय में राजनीतिक बैसाखी की झलक दिख रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता का राजनीति में जाना इस अधर्म का पहला प्रत्यक्ष कदम था। यहि कारण है देश में सामाजिक पथप्रदर्शक/सुधारक पिछले 70 साल में बहुत कम हुए और जो हुए वो सब लगभग बाद में सामाजिक सौदेबाज़ी कर लिये।
आज के परिदृश्य में हर जिले, पंचायत, राज्य और देश स्तर पर व्यापक समाज सुधारक की जरुरत है जो कोई भी अन्यायपूर्ण सामाजिक चलन, राजनीतिक शोषण और सरकारी प्रलोभन को बिना लाग-लपेट, बिना राजनीतिक दबाव, बिना स्वार्थ के अनवरत समाज, सरकार व हर परिस्थिति पर एक बारिक नजर से परखता रहे।
देश के हर गाव का सामाजिक समस्याओं व सरकारी जरूरतों को सूचीबद्ध करके उसका राजनैतिक व सामाजिक समाधान के लिए सामाजिक कार्यकर्ता समाज व सत्ताधारी राजनैतिक शक्तियों को अवगत कराये व हर चुनाव में सामाज के सामने एक परिणाम जारी करे कि इस सरकार के कार्यालय में इन समस्याओं का समाधान हुआ व नहीं हुआ तथा नागरिक को अपने विवेकपूर्ण निर्णय लेने योग्य सक्षम बनाए।
बिना सामाजिक चेतना के इस देश में कोई भी सत्ता निष्पक्ष काम नहीं कर सकती भले वो कितनी भी लोकप्रिय व मजबूत सरकार क्यों न हो।
हमें राजनैतिक बैसाखी से समाज को स्वावलंबी समाज व निर्भीक समाज बनाना होगा।
समाज को यह पता होना चाहिए कि हमारी कौन सी समस्या का समाधान सामाजिक दायित्व से, पंचायत स्तर से, राज्य स्तर से व केंद्र स्तर से हो सकता है।
यह चेतना देशभर में केवल और केवल निष्पक्ष सामाजिक कार्यकर्ता ही कर सकते हैं।
हम पर कोई ऐसे ही जुल्म नहीं कर देता है जबतक हम अपने शक्ति को उसके अधीन न करते हैं।
आज के समय में बिना राजनैतिक सहयोग के हमार समाज अपंग समान है।
हमें सबकुछ परोसा जा रहा है कि हमें इस दायरे में रहना है और हम भेड़ के समान उसके पिछे चल रहे हैं।
समाज के चेतना और आकांक्षा के अनुरूप सरकार चलनी चाहिए जबकि आजादी के बाद से हम सिर्फ राजनैतिक आकांक्षा के अनुरूप से समाज चल रहा हैं।
हमपर राजनैतिक दल राज कर रहे हैं और हम एक लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ राजनैतिक गुलामी में जी रहे हैं आजादी के वक्त से ही।
जबतक कर्तव्यबोध न होगा, सामाजिक चेतना न जागृत होगी व हमें देश के लिए जीने का जज़्बात पैदा न होगा तबतक कोई भी राजनैतिक बदलाव आप कर लो आप राजनैतिक गुलामी के शासन से बाहर नहीं आ सकते।
अपने हक के लिए हर दिन सत्ता को जगाते रहना है, न कि संविदा पर पांच साल के लिए किसी को सत्ता देकर सो जाना होगा।
यह देश खोज की धरती हैं यहा हर इंसान अपने आत्म शांति के लिए निरंतर खुद को खोजता है। यह आदत हम 70 साल में खोते जा रहे हैं हम अब किसी भी एक पहलू को सत्य मानकर बस उसके पिछे दौड़ रहे हैं।
किसी भी नवीन विचार पर संदेह करके गहरी विचार विमर्श करना इस देश की परंपरा रही है।
हमेशा याद रखे जो बातें सैद्धान्तिक रुप में सत्य नहीं होती वह कभी भी वैवाहरिकता में सही नहीं हो सकती।
समाज का जागना अत्यंत आवश्यक है नहीं तो राजनैतिक गुलामी के इस दौर में और भी भयावह परिणाम देखने को मिलेगा।
निराश नहीं होना है बस कोई आपका प्रिय भी कुछ कहे तो उसको बिना विचार विमर्श के तथा सामाजिक प्रभाव को न समझते हुए उनके बातों पर विश्वास मत करिए।
हमें अपनी चेतना को सामाजिक चेतना के परिधि पर वक्त वक्त पर तौलते रहना है।
-- आशीष कुमार मिश्र
बहुत सराहनीय अपील की है आपने अपने लेखनी के माध्यम से
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भैया 🙏♥
Deleteइस ज़रूरी और आवश्यक बिंदु पर अपने महत्वपूर्ण लेख के जरिए ध्यान आकृष्ट करने हेतु आभार भईया ❤️ हर बार की भांति कुछ नवीन और अन्वेषी लेख 💐🌸
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