"मधु-कैटभ बध"


श्रीदुर्गा सप्तशती में मेधा ऋषि देवी माहात्मय में राजा सुरथ और समाधि को मधु-कैटभ कैटभ की कथा सुनाते है।

जब कल्प के अंत जब संपूर्ण जगत एकार्णव में निमग्न हो रहा था तथा प्रभु भगवान् विष्णु शेषनाग की शय्या बिछाकर योग निद्रा का आश्रय ले रहे थे तब उनके कान के मैल से दो भयंकर राक्षस जन्म लिये जो बाद में मधु और कैटभ के नाम से प्रसिद्ध हुये।
 ये दोनों राक्षस ब्रह्मा जी का बध करने को तैयार हुये तो भगवान विष्णु के नाभिकमल पर विराजमान प्रजापति ब्रह्मा जी विष्णु जी को सोते हुये देखकर, ब्रह्मा जी ने निद्रा देवी का आराधना आरंभ किया। 

देवी स्तुति के बाद निद्रा देवी भगवान विष्णु जी के नेत्र,मुख,निसिका,बाहु,हृदय और वक्ष स्थल से निकलकर ब्रह्मा जी के समक्ष प्रकट हो गई।

तब निद्रा से मुक्त भगवान विष्णु ने दोनों राक्षसो को देखा जो ब्रह्मा जी के प्राण लेने को उतारु थे तब भगवान विष्णु जी दोनों से युद्ध करने के लिए शेषनाग शय्या से उठे और उनका बध करने को तैयार हुये।

दोनों राक्षस मधु व कैटभ बहुत ही शक्तिशाली और बलवान थे। भगवान विष्णु जी दोनों राक्षस से 50,000 पचास हजार बर्ष बाहुयुद्ध किये और दोनों राक्षस अपने बाहुबल से उन्मत्त हो रहे थे और इधर महामाया देवी उन्हें माया में डाल  रही थी।

इसलिए दोनों राक्षस भगवान विष्णु जी से कहने लगे कि 'हम तुम्हारी विरता से प्रसन्न हुये , तुम हमलोग से कोई वर मांगो' 
तब भगवान विष्णु जी ने उनसे उनका वध करने का वर मांग लिया। 
इस प्रकार दोनों धोखा मे आ जाने पर उन्होने संपूर्ण पृथ्वी पर जल-ही-जल देखा तब कमलनयन भगवान विष्णु से बोला कि जहाँ पृथ्वी पर जल न हो वहाँ हमारा वध करे तब भगवान विष्णु जी ने तथास्तु कहकर दोनों के सर को अपने जांघ पर रखकर अपने चक्र से उनका वध कर दिया। 

इस प्रकार ब्रह्मा जी के स्तुति पर प्रकट हुयी महामाया देवी के कारण मधु और कैटभ का बध हुआ।

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