"देवी का प्रादुर्भाव और श्रृंगार" वर्णन


आप अक्सर माँ देवी को सम्पूर्ण श्रृंगार के साथ मूर्तियों व चित्र में देखते होंगे, तो आईये जानते हैं कि कैसे देवी माँ का प्रादुर्भाव हुआ और कौन कौन से रत्नों से माँ श्रृंगार करके शरीर रूप धारण की और भगवती परमेश्वरी दैत्यों का संहार की। 

देवताओ और असुरों में पुरे सौ साल युद्ध होने के बाद जब देवताओ की महाबली सेना असुरो की सेना से परास्त हो गई तब सभी देवता प्रजापति ब्रह्मा जी को आगे करके सभी देवता जहाँ भगवान शिव और विष्णु विराजमान थे वहाँ गये। 
इस युद्ध को जीतकर महिषासुर जगत का इंद्र बन बैठा था क्योंकि उसने इंद्र के नेतृत्व वाली देवताओ की महाबली सेना को परास्त किया था।

देवताओ के वचन सुनकर ब्रह्मा और शिव जी बड़े क्रोधित हुये। तब ही अत्यंत कोप में भरे हुये चक्रपाणि श्रीविष्णु के मुख से एक महान तेज प्रकट हुआ। इसी प्रकार ब्रह्मा, शंकर तथा इंद्र आदि अन्यान्य देवताओ के शरीर से भी बड़ा भारी तेज निकला। सब मिलकर एक हो गया। एकत्रित होकर वह तेज एक नारी के रूप में परिणत हुआ। भगवान शंकर के तेज से मुख, यमराज के तेज से सर मे बाल, विष्णु के तेज से भुजाएँ, चंद्रमा के तेज से दोनों स्तन, इंद्र के तेज से मध्यभाग, वरुण के तेज से जंघा ,पींडली और पृथ्वी के तेज से नितंबभाग, ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उनकी उंगलियाँ , बसुओ के तेज से हाथों की उंगलियाँ और कुबेर के तेज से नासिका , प्रजापति के तेज से दांत और अग्नि के तेज से तीनों नेत्र ,भौयें संध्या के तेज से और दोनों कान वायु के तेज से, इसी प्रकार अन्यान्य देवताओ के तेज से कल्याणमयी देवी का आविभार्य हुआ। 

देवी को देखकर सभी देवता प्रसन्न हुये। शंकर ने अपने एक शूल देवी को दिये, फिर विष्णु ने अपने चक्र से चक्र उत्पन्न करके एक चक्र भगवती को अर्पण किये।
ऐसे ही वरुण ने शंख, अग्नि ने शक्ति ,वायु ने धनुष वाण, इंद्र ने वज्र से वज्र उत्पन्न करके वज्र, ऐरावत हाथी से उतर कर एक घण्टा ,यमराज कालदण्ड से दण्ड ,वरुण ने पाश, प्रजापति ने स्फटिका की माला, ब्रह्मा ने कमण्डलु दिये। सुर्य ने देवी के रोम रोम में अपने तेज भर दिये, काल ने उन्हें चमकती ढाल और तलवार ,क्षीरसमुंंद्र ने उज्जवल हार तथा कभी जीर्ण न होने वाले दो दिव्य वस्त्र साथ में ही दिव्य चूडामणि ,दो कुण्डल , उज्जवल अर्धचंद्र , सब बाहु के लिए केयूर , दोनों चरण के लिए निर्मल नूपुर , गले की हँसुली और सब अंगुलीयों रत्नों की बनी अंगूठी भी दी। विश्वकर्मा ने अत्यंत निर्मल फरसा और अनेक अस्र, कमल की माल्या व अभेद कवच , जलधि ने उन्हें कमल पुष्प भेट किये, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह और भाति भाति के रत्न भेट किये, धनकुबेर ने मधु से भरा पानपात्र और सभी नागो के राजा शेष ने बहुमुल्य मणियों से विभूषित नागहार भेंट दिये। 
अब सभी देवताओ ने देवी श्रृंगार के लिए अपने अपने विशेष रत्न , अस्त्र तथा श्रृंगार रत्न देकर माँ भगवती को श्रृंगार से सुसज्जित किये।
इसके बाद माँ भगवती ने राक्षसो से युद्ध प्रारंभ किया।

जय माँ भगवती🙏🚩

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