"शुम्भ और निशुम्भ वध"


जब एक-एक करके माँ दुर्गावती ने दैत्यराज शुम्भ के दैत्यों का संहार करती गयी तब शुम्भ और निशुम्भ दोनों बहुत क्रोधित हुये और रक्तबीज के मरने के बाद दोनों खुद युद्ध हेतू हिमालय आये और माँ दुर्गा को चुनौती दिये। 

देवी और दैत्यों में भिषण संग्राम छिड़ गया, शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों ने मेघ वर्षा के भाँति बाण प्रहार करने लगे जिसका जबाब में माँ देवी क्षण भर मे सबको नष्ट करके दी। 
निशुम्भ ने तीखी तलवार और चमकती हुई ढाल लेकर माँ भगवती के श्रेष्ठ वाहन सिंह के मस्तक पर प्रहार किया।
तब माँ ने क्षुरप्र बाण से निशुम्भ की श्रेष्ठ तलवार और ढाल को खण्ड खण्ड कर दी। तदन्तर देवी ने बाण बर्षा करके निशुम्भ को मारकर धरती पर सुला दी। 

यह देख शुम्भ बडा़ क्रोधित होकर देवी पर प्रहार को दौडा़ ,तब देवी गर्जना की और सिंहनाद के बाद देवी बोली - 'ओ दुश्मन खड़ा रह, खड़ा रह' ,तभी आकाश मे खड़े हुये देवताओं ने कहा - जय हो जय हो! बोला।
फिर माँ भगवती और शुम्भ में भयानक युद्ध छिड़ गया और दोनों तरफ से एक से बढ़कर एक अस्त्र और शक्ति चलाये गये और दोनों ने उसका योग्य उत्तर देकर नष्ट किया। 

इस बिच क्रोध से भरी माँ चण्डिके ने शूल से मारकर शुम्भ को धरती पर गिरा दी, इतने में ही निशुम्भ की चेतना जागृत हुई और वह बाणों से देवी पर प्रहार करना शुरु करके देवी,काली और सिंह को घायल कर दिया। 
यह देख चण्डिका ने निशुम्भ पर बडा़ प्रहार करते हुये शूल से मारकर धरती पर गीरा दी पर निशुम्भ के शरीर से उतना ही विशालकाय दैत्य निकल कर देवी से युद्ध के लिए आवाहन किया तब देवी हँस पडी़ और खड्ग से उसका मस्तक काट दी। इस तरह निशुम्भ का वध हुआ। 

अपने प्राण समान प्रिय भाई के वध के बाद दैत्यराज शुम्भ ने क्रोध से लाल होकर बोला - तुम अन्य स्त्री का सहारा लेकर लड़ती है और खुद मानिनी बनी है।
देवी बोली - ओ दुष्ट ! मै अकेली ही हूँ इस संसार में मेरे अलावा और कौन है ? देख ये मेरी ही विभुतियाँ हैं और देख मेरे में प्रवेश कर रही है।
तदन्तर ब्राह्मणी, काली, शिवदूती, कौमारी, माहेश्वरी और वैष्णवी आदि देवियाँ माँ अम्बिके के शरीर में लीन हो गई।

तब माँ अम्बिके ने कहाँ मै अपने सभी रुप को समेट कर अकेले युद्ध में खडी़ हूँ अब तुम भी स्थिर हो जाओ। 
तदन्तर देवी और शुम्भ में भयंकर युद्ध छिड़ गया।
दोनों ने काई दिव्य शक्तियों और अस्र एक दूसरे पर छोडे़ और वैसा ही जबाब में दोनों ने दिया। 
तब असुर ने सौकडो़ बाप से देवी को आच्छादित कर दिया, यह देखकर देवी क्रोध से भरी शुम्भ के धनुष बाण को नष्ट कर दिया ,ऐसे करते करते देवी अम्बिके ने शुम्भ के सभी शस्त्र को नष्ट कर दी तब शुम्भ ने देवी के छाती पर मुक्का मारा तब देवी ने उसके छाती पर एक थप्पड़ मारकर उसे धरती पर गीरा दिया। तब दैत्यराज शुम्भ ने देवी को आकाश में उछाला, आकाश मे देवी बिना किसी सहारा के युद्ध की। यह युद्ध सभी सिद्ध और मुनीयों को विस्मय में डालने वाला हुआ। 

फिर बहुत देर युद्ध के बाद देवी ने शुम्भ को उठा कर धरती पर पटक दिया। तब फिर दैत्यराज शुम्भ ने देवी का वध हेतु देवी के तरफ दौडा़ तब देवी ने उसके छाती मे शूल मार दी और शुम्भ के प्राण पखेरू उड़ गये और ऐसे दैत्यराज शुम्भ का वध हुआ। 
फिर समस्त देवताओं ने अपराजितादेवी का स्तुति और गुणगान किया। 

जय माँ अम्बिका 🙏🚩
आशीष कुमार मिश्र 

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