देवी स्तुति और देवी वरदान


शुम्भ और निशुम्भ के संहार के बाद समस्त देवताओं ने माँ परमेश्वरी की स्तुति किया।

- हे विश्वेश्वरी! हे अधीश्वरी! तुम ही जगत की एक मात्र आधार हो, हमारी रक्षा करो। 
- हे वैष्णवी! तुम्ही अनन्त बलसम्पन्न शक्ति हो और इस जगत की सारी स्त्री तुम्हारी ही मूर्ति हैं।
- हे जगदंबा! हे सर्वस्वरुपा! तुम्ही सर्वत्र विराजमान और मोक्षदायनी हो। 
- हे नारायणी! तुम ही मंगलदायनी और तुम्ही कल्याणदायनी शिवा सब पुरुषार्थ सिद्ध करने वाली त्रिनेत्र वाली और गौरी हो।
- हे ब्रह्मणी ! हे माहेश्वरी ! हे नारायणी देवी तुम्हें नमस्कार हैं।
- हे कौमारीरूपधारणी! हे विराहीरूपधारणी! हे वैष्णवी आपको प्रणाम है। 
- हे शिवदूती ! हे मुण्डमर्दनी! हे चामुण्डारुपा नारायणी आपके प्रताप को हमारा नमस्कार हैं।
-लक्ष्मी,लज्जा,महाविद्या,श्रद्धा,पुष्टि,स्वधा,ध्रुवा,मेधा,सरस्वती,वरा,भूति,बाभ्रवी तथा ईशा- रुपिणी नारायणी आपको नमस्कार।
-दुर्गे, कात्यायनी,भद्रकाली, चण्डिके हमारा मंगल करो।

हे परमेश्वरि हमारी स्तुति स्वीकार करो और वरदान दो🙏

देवी प्रसन्न होकर बोली- देवताओं! मै वर देने को तैयार हूँ मांगो क्या अभिलाषा है।

देवताओं ने कहा- हे सर्वेश्वरि! हमारी रक्षा करो और हमारे शत्रु का नाश करो। 

देवी बोली - देवताओं! वैवस्वत मन्वन्तर के अठाईसवें युग में शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो अन्य महादैत्य उत्तपन्न होगे तब मै नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण होकर विंध्याचल मे रहकर उनका नाश करूंगी और  मुझे सब माँ विंध्यवासिनी से पहचानेगें।

फिर मै पृथ्वी पर अवतार लेकर वैप्रचित्त नाम के असुर का वध करके उसका भक्षण करूंगी तो अनार के फुल समान लाल मेरे दांत देख सभी 'रक्तदन्तिका' नाम से मेरी स्तुती करेंगे।

फिर जब सौ बर्ष के लिए पृथ्वी पर वर्षा रूकेगी तब अयोनिजारूप प्रकट होकर और सौनेत्रो से मुनीयों को देखुंगी तब वो मेरा 'शताक्षी' नाम से कीर्तन करेंगे और जब पृथ्वी का भरण पोषण करूंगी तो सब मुझे 'शाकम्भरी' नाम  से जानेंगे। उसी काल में मै दुर्गम नामक दैत्य का भक्षण करूंगी तो मेरा नाम 'दुर्गादेवी' से प्रसिद्ध होगा। फिर मै जब भीम रूप धारण करके हिमालय पर सभी राक्षसो का भक्षण करूंगी तो मुनी मुझे 'भीमा देवी' नाम से आराधना करेंगे।

जब अरूण नामक दैत्य तीनों लोक में तबाही मचायेगा तब मै छः पैरों वाले असंख्य भ्रमरों का रुप धारण करके उसका विनाश करूंगी तब तीनों लोक मुझे 'भ्रामरी' नाम से स्तुति करेगा।

ऐसे ही जब जब दानवी बाधा उत्पन्न होगी तब तब मैं अवतार लेकर इनका संहार करूंगी।

जो भी मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ और निशुम्भ संहार के प्रसंग का पाठ करेगा उसकी रक्षा मै करूंगी। जो एकाग्रचित्त होकर दुर्गासप्तशती का पाठ करेगा उसके रोग,दःख नष्ट करके मै उसका उद्धार करूंगी।
यह कहकर माँ अंतर्धायन हो गयी।

जय माँ दुर्गा 🙏🚩

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