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Showing posts from September, 2022

माँ चामुण्डा -शिवदूती पराक्रम

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शुम्भ और निशुम्भ के प्रस्तावों को ठूकरा कर जब माँ कौशिकी ने अपने शर्त रखे तो दैत्यराज शुम्भ ने अपने कोटी कोटी सेना भेज कर माँ से युद्ध कराये। प्रारम्भ में ध्रुमलोचन दैत्य साठ हजार असुरो की सेना लेकर देवी से युद्ध करने गया तब अम्बिके के 'हुं' उच्चारण मात्र से ही ध्रुमलोचन और उसकी सेना को भस्म कर दिया।  ध्रुमलोचन और उसकी सेना का संहार सुन दैत्यराज शुम्भ क्रोधित हुआ और चण्ड-मुण्ड को आदेश दिया कि बड़ी से बड़ी सेना ले जाओ और उस स्त्री को परास्त करके उसका झोटा पकड़ के मेरे पास लाओ। आज्ञा अनुसार चण्ड-मुण्ड विशाल सेना लेकर हिमालय गये माँ कौशिकी से युद्ध करने।  तब अम्बिका देवी ने बड़े क्रोधित होकर विशाल और विकराल रूप धारण कर कालिकादेवी ने बड़े बड़े दैत्यों का भक्षण करने लगी। यह देख चण्ड-मुण्ड ने देवी के तरफ दौडे़, फिर देवी ने 'हं' का उच्चारण करके दोनों का मस्तक काट दी। तदन्तर काली ने दोनों राक्षसो के मस्तक लेकर बोली हे! देवी देखो मैने दोनों का वध कर दिया। तब माँ चण्डिके ने काली से मधुर वाणी मे कहा 'देवी! तुम चण्ड-मुण्ड को मेरे पास लाई हो इसलिए संसार में चामुण्डा ...

दैत्यराज से माँ दुर्गा का पाणिग्रहण शर्त

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जब शुम्भ और निशुम्भ नामक असुरों ने घमंड में आकर शचीपति इंद्र से तीनों लोक का राज और यज्ञभाग छिन लिये तथा सभी देवताओं ,सुर्य, अग्नि, चंद्रमा के अधिकार को स्वयं उपयोग करने लगे तब सभी देवताओं ने अपराजितादेवी का स्मरण किये और बोले हे! जगदम्बा आपने वर दिया था कि जब हम संकट में होंगे और आपका स्तुति करेंगे तब आप प्रकट होकर सारे संकट का निवारण करेंगी।  फिर देवताओं ने माँ परमेश्वरी को प्रकट करने के लिए उनकी स्तुति आरंभ की~ जब देवता स्तुति कर रहे थे तब वहाँ गंगा में स्नान को माँ पार्वती आयी और उन्होने पुछा आप देवता किसकी स्तुति कर रहे हैं तभी माँ गौरी के शरीर से प्रकट होकर भगवती बोली- ये देवता शुम्भ दैत्य से पराजित होने के बाद यहाँ इक्कठा होकर मेरी स्तुती कर रहे हैं। पार्वती जी के शरीर से माँ अम्बिके का प्रादुर्भाव हुआ इसलिए जगत उन्हें 'कौशिकी' कहता हैं। कौशिकी के प्रकट होने से पार्वती का शरीर काले रंग का हो गया इसलिए वे हिमालय पर रहने वाली कालिकादेवी नाम से विख्यात हुई।  तदनन्तर वहाँ शुम्भ-निशुम्भ के भृत्य चण्ठ-मुण्ड वहाँ आये और माँ कौशिकी के विराण और दिव्य स्वरुप को देखा त...

देवताओं द्वारा 'माँ भगवती' की स्तुति

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जब माँ दुर्गा ने अपने पराक्रम से महिषासुर तथा अन्य दैत्यों का संहार कर दी तब सभी देवताओं ने माँ परमेश्वरी को सर और गर्दन झुका कर प्रणाम करते हुये उनके पराक्रम में बखान करते हुए हृदय से आभार व्यक्त किये।  इसी क्रम में सभी देवताओं ने अनेक नामों द्वारा माँ भगवती का स्तुति किया।  -सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति समुदाय ही जिनका स्वरुप है वैसी पूजनीया जगदंबा को हम भक्ति- पुर्वक नमस्कार करते हैं। -जो पुण्यात्मा के यहाँ लक्ष्मी रुप, पापियों के यहाँ दरिद्रता रुप, शुद्ध अंतःकरण वाले के हृदय में बुद्धिरुप, सत्पुरूष में श्रद्धारूप, कुलीन मनुष्य मे लज्जा रूप में निवास करती है, वैसी भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। -देवी! सम्पूर्ण यज्ञों मे जिसके उच्चारण से सब देवता तृप्ति लाभ लेते हैं वो स्वाहा आप हो।  -आप पितरों के कल्याण का कारण आप हो इसलिए सब आपको स्वधा भी कहते हैं। -मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले मुनीजन जिनका अभ्यास करते हैं वो भगवती आप हो। -जो समस्त शास्रो के सार का ज्ञान होता है वो मेधाशक्ति तथा दुर्गम भवसागर पार करानेवाली नौकारुपी दुर्गा आप हो। -भगवान विष्णु वक्षस्थल में...

"महिषासुर और पांच अरब से अधिक दैत्यों का वध"

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देवताओ के तेज से नारी रूप धारण करने वाली माँ भवानी जब सिंह गर्जना की तो पुरा ब्रह्मांड हिल गया और राक्षस महिषासुर की सेना अपनी चतुरंगिणी सेना को इक्कठा करके माँ सिंहासनी से युद्ध करने को सज्ज हुई। महिषासुर की दैत्यों की सेना पांच अरब सात करोड़ एक लाख बीस हजार से अधिक 5,07,01,20,000 रथियो के साथ युद्ध को सज्ज हुई थी । साठ हजार रथियो के साथ उदग्र नामक दैत्य युद्ध करने लगा  एक करोड़ रथियो के साथ महाहनू नामक दैत्य युद्ध करने आया  असिलोमा नामक महादैत्य पांच करोड़ रथियो के साथ रणभूमि में आया  साठ हजार रथियो से घिरा हुआ बाष्कल नामक दैत्य लड़ने लगा  पारिवारित नामक राक्षस अपने हाथी घोड़ों के साथ एक करोड़ रथियो के साथ युद्ध करने आया  5 अरब रथियो के साथ बिडाल नामक दैत्य युद्ध करने लगा  ये रथियो को टोली को एक-एक करके माँ देवी ने ध्वस्त की और सभी राक्षसो का विनाश।  फिर अंत में महिषासुर अपने कोटी कोटी सेना शस्त्र के साथ त्रिनेत्र वाली परमेश्वरी से युद्ध करने आया। जब सारे दैत्यों का संहार महिषासुर ने देखा तो वह भैसे का रूप धारण करके देवी के गणो को त्रास क...

"देवी का प्रादुर्भाव और श्रृंगार" वर्णन

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आप अक्सर माँ देवी को सम्पूर्ण श्रृंगार के साथ मूर्तियों व चित्र में देखते होंगे, तो आईये जानते हैं कि कैसे देवी माँ का प्रादुर्भाव हुआ और कौन कौन से रत्नों से माँ श्रृंगार करके शरीर रूप धारण की और भगवती परमेश्वरी दैत्यों का संहार की।  देवताओ और असुरों में पुरे सौ साल युद्ध होने के बाद जब देवताओ की महाबली सेना असुरो की सेना से परास्त हो गई तब सभी देवता प्रजापति ब्रह्मा जी को आगे करके सभी देवता जहाँ भगवान शिव और विष्णु विराजमान थे वहाँ गये।  इस युद्ध को जीतकर महिषासुर जगत का इंद्र बन बैठा था क्योंकि उसने इंद्र के नेतृत्व वाली देवताओ की महाबली सेना को परास्त किया था। देवताओ के वचन सुनकर ब्रह्मा और शिव जी बड़े क्रोधित हुये। तब ही अत्यंत कोप में भरे हुये चक्रपाणि श्रीविष्णु के मुख से एक महान तेज प्रकट हुआ। इसी प्रकार ब्रह्मा, शंकर तथा इंद्र आदि अन्यान्य देवताओ के शरीर से भी बड़ा भारी तेज निकला। सब मिलकर एक हो गया। एकत्रित होकर वह तेज एक नारी के रूप में परिणत हुआ। भगवान शंकर के तेज से मुख, यमराज के तेज से सर मे बाल, विष्णु के तेज से भुजाएँ, चंद्रमा के तेज से दोनों स्तन, ...

"मधु-कैटभ बध"

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श्रीदुर्गा सप्तशती में मेधा ऋषि देवी माहात्मय में राजा सुरथ और समाधि को मधु-कैटभ कैटभ की कथा सुनाते है। जब कल्प के अंत जब संपूर्ण जगत एकार्णव में निमग्न हो रहा था तथा प्रभु भगवान् विष्णु शेषनाग की शय्या बिछाकर योग निद्रा का आश्रय ले रहे थे तब उनके कान के मैल से दो भयंकर राक्षस जन्म लिये जो बाद में मधु और कैटभ के नाम से प्रसिद्ध हुये।  ये दोनों राक्षस ब्रह्मा जी का बध करने को तैयार हुये तो भगवान विष्णु के नाभिकमल पर विराजमान प्रजापति ब्रह्मा जी विष्णु जी को सोते हुये देखकर, ब्रह्मा जी ने निद्रा देवी का आराधना आरंभ किया।  देवी स्तुति के बाद निद्रा देवी भगवान विष्णु जी के नेत्र,मुख,निसिका,बाहु,हृदय और वक्ष स्थल से निकलकर ब्रह्मा जी के समक्ष प्रकट हो गई। तब निद्रा से मुक्त भगवान विष्णु ने दोनों राक्षसो को देखा जो ब्रह्मा जी के प्राण लेने को उतारु थे तब भगवान विष्णु जी दोनों से युद्ध करने के लिए शेषनाग शय्या से उठे और उनका बध करने को तैयार हुये। दोनों राक्षस मधु व कैटभ बहुत ही शक्तिशाली और बलवान थे। भगवान विष्णु जी दोनों राक्षस से 50,000 पचास हजार बर्ष बाहुयुद्ध किये और...

समाज सुधारक

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समाज सुधारक   समाज ने अपना कर्तव्य राजनीतिक दल को देकर कलयुग का सबसे बड़ा अधर्म किया है। आज हर न्याय-अन्याय में राजनीतिक बैसाखी की झलक दिख रही है।           सामाजिक कार्यकर्ता का राजनीति में जाना इस अधर्म का पहला प्रत्यक्ष कदम था। यहि कारण है देश में सामाजिक पथप्रदर्शक/सुधारक पिछले 70 साल में बहुत कम हुए और जो हुए वो सब लगभग बाद में सामाजिक सौदेबाज़ी कर लिये।      आज के परिदृश्य में हर जिले, पंचायत, राज्य और देश स्तर पर व्यापक समाज सुधारक की जरुरत है जो कोई भी अन्यायपूर्ण सामाजिक चलन, राजनीतिक शोषण और सरकारी प्रलोभन को बिना लाग-लपेट, बिना राजनीतिक दबाव, बिना स्वार्थ के अनवरत समाज, सरकार व हर परिस्थिति पर एक बारिक नजर से परखता रहे।      देश के हर गाव का सामाजिक समस्याओं व सरकारी जरूरतों को सूचीबद्ध करके उसका राजनैतिक व सामाजिक समाधान के लिए सामाजिक कार्यकर्ता समाज व सत्ताधारी राजनैतिक शक्तियों को अवगत कराये व हर चुनाव में सामाज के सामने एक परिणाम जारी करे कि इस सरकार के कार्यालय में इन समस्याओं का समाधान हुआ व नहीं हुआ तथा ...